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रोज केरकेट्टाः प्रतिनिधि कहानियां

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सुप्रसिद्ध आदिवासी स्टोरीटेलर रोज केरकेट्टा की चुनिंदा कहानियों का प्रतिनिधि संग्रह

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Description

Rose Kerketta Pratinidhi Kahaniyan

कथा लेखन के क्षेत्र में रोज केरकेट्टा एक सुपरिचित नाम है। उनके दो कहानी संग्रह – ‘पगहा जोरी जोरी रे घाटो’ और ‘बिरुवार गमछा तथा अन्य कहानियां’ – ने भारतीय साहित्य पर आदिवासी दृष्टिकोण, कथ्य, कथनशैली और सौंदर्यबोध की उल्लेखनीय छाप छोड़ी है। उनकी प्रतिनिधि कहानियां पढ़ते समय, कोई भी आसानी से देख सकता है कि उनके कथा लेखन की विशिष्टताएं उनके अद्वितीय दृष्टिकोण और संवेदनशीलता में निहित हैं, जो आदिवासी समाज की गहरी मानवता और जटिलताओं को उजागर करती हैं।

मानवीय संवेदना का चित्रण:

रोज केरकेट्टा आदिवासी समाज के लोगों को उन मानवीय भावनाओं के साथ प्रस्तुत करती हैं जो हम सभी में विद्यमान हैं—प्रेम, करुणा, क्रोध, संघर्ष, और आकांक्षाएँ। वे आदिवासियों को “मनुष्येतर” कहने के प्रचलित पूर्वाग्रह को तोड़कर दिखाती हैं कि उनके भी दिल की धड़कन है, उनकी भी संवेदनाएँ हैं।

प्रकृति का अभिन्न अंग:

उनके लेखन में प्रकृति केवल परिदृश्य नहीं बल्कि कथानक का सक्रिय भाग बनकर उभरती है। जैसे कि झींगुरों की आवाज, बदलता मौसम, और प्राकृतिक परिवर्तनों का वर्णन—ये सभी कथानक को दिशा देने के साथ पात्रों के मनोभावों में गहराई भरते हैं।

संयमित भाषा एवं अपव्यय से रहित अभिव्यक्ति:

रोज केरकेट्टा अतिरिक्त शब्दों के बिना, पात्रों के जीवन के प्रवाह और बदलते मनोभावों के माध्यम से कहानी कहती हैं। उनकी लेखनी में शब्दों का चयन अतिशयोक्ति से रहित, साधारण लेकिन प्रभावशाली होता है।

सामाजिक यथार्थवाद और आत्म-आलोचना:

वे आदिवासी समाज की सामाजिक वास्तविकताओं—विस्थापन, पलायन, सांस्कृतिक अतिक्रमण और आर्थिक पिछड़ापन—पर गहरी नजर डालती हैं। साथ ही, आदिवासी समाज की आत्म-आलोचना करते हुए उनके रीति-रिवाज और परंपराओं की जटिलताओं को भी उजागर करती हैं।

आदिवासी नारीवाद:

उनकी कहानियों में आदिवासी नारी का विशेष चित्रण मिलता है। वे नारी के अधिकारों की वकालत करती हैं, परन्तु लिंग के आधार पर द्वंद्व को नहीं बढ़ावा देतीं। उनके दृष्टिकोण में आदिवासी समाज के भीतर स्त्री-पुरुष दोनों के बीच समानता और सहयोग की झलक मिलती है।

अविचलता और सहजता:

उनके पात्र जीवन के थपेड़ों के बीच चट्टान की तरह अडिग रहते हैं। इस अविचलता के साथ-साथ, उनकी लेखनी में एक सरलता और सहजता है जो समाज के कठोर तथ्यों के बीच मानवीय संवेदनाओं को जीवंत करती है।

इन सभी विशेषताओं के माध्यम से रोज केरकेट्टा न केवल आदिवासी समाज की अनदेखी कहानियों को उजागर करती हैं, बल्कि उनके जीवन के विविध पहलुओं—संघर्ष, सौंदर्य, मानवीय संवेदना और सामाजिक जटिलताओं—का सजीव चित्रण प्रस्तुत करती हैं।

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